Wednesday, April 1, 2009

आज हम बात करते हैं ग़ज़ल से जुड़े कई सारे तकनीकी शब्‍दों में से कुछ के प्रारंभिक ज्ञान की

गज़ल को लेकर कई सारे तकनीकी शब्‍द हैं जिनके बारे में विस्‍तृत बातें तो आने वाले समय में हम करेंगें ही किन्‍तु आज तो हम केवल उनके बारे में प्रारंभिक ज्ञान ही लेंगें । कई लोगों ने पिछले पोस्‍ट पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं सभी को धन्‍यवाद । आज का लेख केवल प्रारंभिक ज्ञान है इन सभीका विस्‍तृत और विश्‍लेषणात्‍मक अध्‍ययन हम आगे वाले पाठों में करेंगें।

शेर : वास्‍तव में उसको लेकर काफी उलझन होती है कि ये ग़ज़ल वाला शेर है या कि जंगल वाला मगर ये उलझन केवल देवनागरी में ही है क्‍योंकि उर्दू में तो दोनों शेरों को लिखने और उनके उच्‍चारण में अंतर होता है । ग़ज़ल वाले शेर को उर्दू में कुछ ( लगभग) इस तरह से उच्‍चारित किया जाता है ' शे'र' इसलिये वहां फ़र्क़ होता है वास्‍तव में उसे शे'र कहेंगे तो जंगल के शेर से अंतर ख़ुद ही हो जाएगा । ये शे'र जो होता है इसकी दो लाइनें होती हैं । वास्‍तव में अगर शे'र को परिभाषित करना हो तो कुछ इस तरह से कर सकते हैं दो पंक्तियों में कही गई पूरी की पूरी बात जहां पर दोनों पंक्तियों का वज्‍़न समान हो और दूसरी पंक्ति किसी पूर्व निर्धारित तुक के साथ समाप्‍त हो । ध्‍यान दें कि मैंने पूरी की पूरी बात कहा है वास्‍तव में कविता और ग़ज़ल में फर्क ही ये है कविता एक ही भाव को लेकर चलती है और पूरी कविता में उसका निर्वाहन होता है । ग़ज़ल में हर शे'र अलग बात कहता है और इसीलिये उस बात को दो पंक्तियों में समाप्‍त होना ज़रूरी है । इन दोनो लाइनों को मिसरा कहा जाता है शे'र की पहली लाइन होती है 'मिसरा उला' और दूसरी लाइन को कहते हैं 'मिसरा सानी' । दो मिसरों से मिल कर एक शे'र बनता है । अब जैसे उदाहरण के लिये ये शे'र देखें 'मत कहो आकाश में कोहरा घना है, ये किसी की व्‍यक्तिगत आलोचना है ' इसमें 'मत कहो आकाश में कोहरा घना है ' ये मिसरा उला है और ' ये किसी की व्‍यक्तिगत आलोचना है' ये मिसरा सानी है । तो याद रखें जब भी आप शे'र कहें तो उसमें जो दो मिसरे होंगें उनमें से उपर का मिसरा जो कि पहला होता है उसे मिसरा उला कहते हैं और जिसमें आप बात को ख़त्‍म करते हैं तुक मिलाते हैं वो होता हैं मिसरा सानी । एक अकेले मिसरे को शे'र नहीं कह सकते हैं । वो अभी मुकम्‍मल नहीं है ।
मिसरा : जब हम शे'र कहते हैं तो उसकी दो लाइनें होती हैं पहली लाइन जो कि स्‍वतंत्र होती है और जिसमें कोई भी तुक मिलाने की बाध्‍यता नहीं होती है । इस पहली लाइन को कहा जाता है मिसरा उला । उसके बाद आती है दूसरी लाइन जो कि बहुत ही महत्‍वपूर्ण होती है क्‍योंकि इसमें ही आपकी प्रतिभा का प्रदर्शन होता है । इसमें तुक का मिलान किया जाता है और इस दूसरी लाइन को कहा जाता है मिसरा सानी । अर्थात पूरी की पूरी बात कहने के लिये आपको दो लाइनें दी गईं हैं पहली लाइन में आपको आपनी बात को आधा कहना है ( मिसरा उला ) जैसे सर झुकाओगे तो पत्‍थर देवता हो जाएगा इसमें शाइर ने आधी बात कह दी है अब इस आधी को पूरी अगली पंक्ति में करना ज़रूरी है (मिसरा सानी) इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा । मतलब मिसरा सानी वो जिसमें आपको अपनी पहली पंक्ति की अधूरी बात को हर हालत में पूरा करना ही है । गीत में क्‍या होता है कि अगर एक छंद में कोई बात पूरी न हो पाय तो अगले छंद में ले लो पर यहां पर नहीं होता यहां तो पूरी बात को कहने के लिये दो ही लाइनें हैं अर्थात गागर में सागर भरना मतलब शे'र कहना । मिसरा सानी का महत्‍व अधिक इसलिये है क्‍योंकि आपको यहां पर बात को पूरा करना है और साथ में तुक ( काफिया ) भी मिलाना है ( काफिया आगे देखें उसके बारे में )। मतलब एक पूर्व निर्धारित अंत के साथ बात को खत्‍म करना मतलब मिसरा सानी

क़ाफिया : क़ाफिया ग़ज़ल की जान होता है । दरअसल में जिस अक्षर या शब्‍द या मात्रा को आप तुक मिलाने के लिये रखते हैं वो होता है क़ाफिया । जैसे ग़ालिब की ग़ज़ल है ' दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्‍या है, आखि़र इस दर्द की दवा क्‍या है ' अब यहां पर आप देखेंगें कि 'क्‍या है' स्थिर है और पूरी ग़ज़ल में स्थिर ही रहेगा वहीं दवा, हुआ जैसे शब्‍द परिवर्तन में आ रहे हैं । ये क़ाफिया है 'हमको उनसे वफ़ा की है उमीद जो नहीं जानते वफ़ा क्‍या है ' वफा क़ाफिया है ये हर शे'र में बदल जाना चाहिये । ऐसा नहीं है कि एक बार लगाए गए क़ाफिये को फि़र से दोहरा नहीं सकते पर वैसा करने में आपके शब्‍द कोश की ग़रीबी का पता चलता है मगर करने वाले करते हैं 'दिल के अरमां आंसुओं में बह गए हम वफा कर के भी तन्‍हा रह गए, ख़ुद को भी हमने मिटा डाला मग़र फ़ासले जो दरमियां थे रह गए' इसमें रह क़ाफिया फि़र आया है क़ायदे में ऐसा नहीं करना चाहिये हर शे'र में नया क़ाफि़या होना चाहिये ताकि दुनिया को पता चले कि आपका शब्‍दकोश कितना समृद्ध है और ग़ज़ल में सुनने वाले बस ये ही तो प्रतीक्षा करते हैं कि अगले शे'र में क्‍या क़ाफिया आने वाला है ।
रदीफ : एक और चीज़ है जो स्थिर है ग़ालिब के शे'र में दवा क्‍या है, हुआ क्‍या है में क्‍या है स्थिर है ये 'क्‍या है' पूरी ग़ज़ल में स्थिर रहना है इसको रदीफ़ कहते हैं इसको आप चाह कर भी नहीं बदल सकते । अर्थात क़ाफिया वो जिसको हर शे'र में बदलना है मगर उच्‍चारण समान होना चाहिये और रदीफ़ वो जिसको स्थिर ही रहना है कहीं बदलाव नहीं होना है । रदीफ़ क़ाफिये के बाद ही होता है । जैसे ''मुहब्‍बत की झूठी कहानी पे रोए, बड़ी चोट खाई जवानी पे रोए' यहां पर ' पे रोए' रदीफ़ है पूरी ग़ज़ल में ये ही चलना है कहानी और जवानी क़ाफिया है जिसका निर्वाहन पूरी ग़ज़ल में पे रोए के साथ होगा मेहरबानी (काफिया) पे रोए (रदीफ), जिंदगानी (काफिया) पे रोए (रदीफ) , आदि आदि । तो आज का सबक क़ाफिया हर शे'र में बदलेगा पर उसका उच्‍चारण वही रहेगा जो मतले में है और रदीफ़ पूरी ग़ज़ल में वैसा का वैसा ही चलेगा कोई बदलाव नहीं ।


मतला : ग़ज़ल के पहले शे'र के दोनों मिसरों में क़ाफिया होता है इस शे'र को कहा जाता है ग़ज़ल का मतला शाइर यहीं से शुरूआत करता है ग़ज़ल का मतला अर्ज़ है । क़ायदे में तो मतला एक ही होगा किंतु यदि आगे का कोई शे'र भी ऐसा आ रहा है जिसमें दोनों मिसरों में काफिया है तो उसको हुस्‍ने मतला कहा जाता है वैसे मतला एक ही होता है पर बाज शाइर एक से ज्‍़यादा भी मतले रखते हैं । ग़ज़ल का पहला शे'र जो कुछ भी था उसकी ही तुक आगे के शे'रों के मिसरा सानी में मिलानी है ।


मकता : वो शे'र जो ग़ज़ल का आखिरी शे'र होता है और अधिकांशत: उसमें शायर अपने नाम या तखल्‍लुस ( उपनाम) का उपयोग करता है । जैसे हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया पर याद आता है, वो हर एक बात पे कहना के यूं होता तो क्‍या होता अब इसमें गालिब आ गया है मतलब अपने नाम को उपयोग करके शाइर ये बताने का प्रयास करता है कि ये ग़ज़ल किसकी है । तो वो शे'र जिसमें शाइर ने अपने नाम का प्रयोग किया हो और जो अंतिम शे'र हो उसे मकता कहा जाता है ।
सारांश :- आज हमने सीखा कि ग़ज़ल में शे'र क्‍या होता है शे'र में मिसरा क्‍या होता है रदीफ और काफिया का प्रारंभिक ज्ञान हमने लिया और मतला तथा मकता जैसे शब्‍दों को अर्थ जाना । अगली कक्षा में हम बहर, रुक्‍न जैसे और तकनीकी शब्‍दों की जानकारी लेंगें । ध्‍यान दें कि अभी इनकी प्रारंभिक जानकारी ही चल रही है विस्‍तृत चर्चा तो आगे होनी है ।

- पंकज सुबीर